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बुज़ुर्गों के सम्मान में छत्तीसगढ़ पेंशनर्स समाज ने किया सरस कवि-सम्मेलन
अम्बिकापुर। छत्तीसगढ़ पेंशनर्स समाज जिला शाखा अम्बिकापुर की ओर से शायर-ए-शहर यादव विकास की अध्यक्षता में सियान सदन में बुज़ुर्गों के सम्मान में सरस कवि-सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें नगर के कवियों ने अपनी उत्कृष्ट कविताओं का पाठ किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व बीडीओ आरएन अवस्थी, विशिष्ट पूर्व एडीआईएस ब्रह्माशंकर सिंह और जमुनालाल श्रीवास्तव थे।
अतिथियों द्वारा मां वीणावादिनी की पूजा व लोकगायिका पूर्णिमा पटेल की मनोहरी सरस्वती-वंदना की प्रस्तुति से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। पेंशनर्स समाज के अध्यक्ष हरिशंकर सिंह ने सभी आगंतुक कवियों का सम्मान करते हुए अपना वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया तथा समाज के नये सदस्यों का परिचय भी कराया। तत्पश्चात् कवयित्री माधुरी जायसवाल ने मां महामाया से सहज विनय-निवेदन किया- हे मां, मेरा विश्वास न उठने देना। यदि दुनिया में भय से डर जाऊं, अंधेरों में कहीं सिमट जाऊं, तो बन के रौशनी मुझे राह दिखा देना। डॉ. पुष्पा सिंह ने बुज़ुर्ग माता-पिता के अवदानों को याद किया और संतानों से उनकी निरंतर सेवा व देखभाल का अनुरोध किया- दर्द कैसा भी हो दवा अपने हाथ है। बेफिक्र, बिंदास हूं, मां की दुआ साथ है। ज़िंदगी से हारकर मौत को गले लगाने आया। लंबी उमर की दुआ मांगते मां-बाप को पाया। कविवर विनोद हर्ष ने सही कहा कि पग-पग पर सुख-दुख का इम्तहान होता है तब जाकर कोई शख़्स मुकम्मल सियान होता है। कवि रामलाल विश्वकर्मा ने मां के विषय में उम्दा बातें कहीं- खाती नहीं ख़ुद पर खिलाती है, रातभर जागकर बच्चों को सुलाती है। वह एक सजग प्रहरी और बागबां होती है क्योंकि वह मां होती है।
पवित्र श्रावण मास और भगवान शिव का अनन्य संबंध जगजाहिर है। गीतकार पूनम दुबे ने दोहे में भगवान शंकर की महिमा का बखान किया- सावन पावन है सदा, शिव-गौरी के संग। औघड़दानी नाम है, लिपटे रहें भुजंग। प्रसिद्ध अभिनेत्री व कवयित्री अर्चना पाठक ने महाकाल को दुखहर्ता बताया- सत्यम् शिवम् पहचान लो, जग है मिथ्या जाल। भक्तों का दुख हर रहे, पास न आए काल। सारिका मिश्रा ने शिव-आराधना करते हुए अपनी विवशता का उल्लेख किया- भोले बाबा को मनाऊं तो मनाऊं कैसे? धाम उनका दूर बहुत है, जाऊं तो जाऊं कैसे? वरिष्ठ कवयित्री गीता दुबे ने अपने काव्य में सावन की अद्भुत छटा बिखेरी- ये सावन की बूंदे ख़ुशबू लुटाए, माटी-महक मेरे मन को लुभाए। वरिष्ठ कवि बंशीधर लाल ने तो यहां तक कह दिया- काले बादल आए, रिमझिम बूंद गिराए, तन की ज्वाला मिटा कर मन में आग लगाए। नाचे दिल पागल मयूर हो, धरती भी मुस्काए, झूमे तरु-पल्लव पुलकित हो लहर-लहर लहराए। कवि-ग़ज़लकार राजेश पाण्डेय ‘अब्र’ ने सावन में बूंदों से मल्हार बरसने की बात कही- लौट के आया अब के फिर से सावन मस्त बहारों में। हरियाली अब रंग ओढ़ बिखरी है मस्त नज़ारों में। बूंदों से मल्हार बरसना प्रीत में जबसे देख लिया, रिश्तों का विस्तार हुआ- धरती, आकाश, सितारों में।
अपना घर सबको प्यारा लगता है, यह बात गीत-कवि कृष्णकांत पाठक से ज्यादा भला कौन जान सकता है! उन्होंने गीत गाया- सबसे प्यारा मेरा घर, जग से न्यारा मेरा घर। जब भी हारा मन से अपने, दिया सहारा मेरा घर। कवि संतोष ‘सरल’ हिन्दी व सरगुजिहा के प्रतिभावान रचनाकार हैं। कवि-सम्मेलन में उन्होंने अपने श्रेष्ठ सरगुजिहा गीत की प्रस्तुति देकर सबका मन मोह लिया- करम के डार नोनी सरना कर पूजा, सबले सुघ्घर एदे हमर सरगुजा। हमर खेते होथे कुसियार, गहूं, धान, साग-भाजी होथे जम्मो, आलू, कोचईपान, लकरा के चटनी संग बासी खवईया, सबले सुघ्घर एदे हमर सरगुजा। वरिष्ठ कवि उमाकांत पाण्डेय का स्मृति-गीत भी सबके मन के तारों को झंकृत कर गया- मैं तेरी यादों में खोया, कुछ-कुछ जागा, कुछ-कुछ सोया। तुमने फिर सपनों में आकर मुझको अपनी बांह उढ़ा दी, तुमने रात की उमर बढ़ा दी।
वरिष्ठ रचनाकार डॉ. सपन सिन्हा ने कलमकारों के विषय में बताया- सदा उपकार करते हैं, कभी नफ़रत नहीं करते, जिनके हांथों में सूरज हो, अंधेरों से नहीं डरते। अपनी लेखनी से जो यहां जग को जगाते हैं, कलम के हैं सिपाही वो, मरकर भी नहीं मरते। प्रख्यात कवयित्री पूर्णिमा पटेल की कविता में इंसान के दोहरे चरित्र का चित्रण हुआ- यूं तकल्लुफ़ से बात करते हो, नश्तरों की तरह गुज़रते हो। इतना मायूसपन भी ठीक नहीं, बारहा पतझड़ों-सा झरते हो। कवि-सम्मेलन में सरगुजा विश्वविद्यालय के प्राध्यापक राजकुमार उपाध्याय ’मणि’ की कविता – ऐ मेरे यारों, पुरानी बातों को छोड़, ज़िंदगी में अब नई बातों को जोड़, कवयित्री गीता द्विवेदी की रचना- बस स्वप्न देखते व्यतीत हो गया, जिसे भविष्य जाना वो अतीत हो गया, अंजू पाण्डेय की- जब हो जाती भोर, निकलूं मैं जंगल की ओर, चंद्रभूषण मिश्र की – मुझे कुछ नहीं चाहिए साहस का एक संयम ही दे दो, अजय श्रीवास्तव की कविता- ये दुनिया मुझको तंग करती है, निर्मल गुप्ता का कलाम- बुज़ुर्गों की झुर्रियां और सफेद बाल उनके अनुभवों का भण्डार है तथा आरके द्विवेदी व पूनम देवी की भोजपुरी कविताओं की श्रोताओं ने भरपूर सराहना की। शायर-ए-शहर यादव विकास की ग़ज़ल ने सबके दिलों को छू लिया और ख़ूब तारीफें बटोरीं- फिर किसी ने ग़ज़ल सुनाई है, कली गुलशन में खिलखिलाई है। महफ़िलों में बिखर गई ख़ुशबू, आप आए बहार आई है। अंत में, सरोकारों के कवि मुकुंदलाल साहू ने बारिश के मौसम में खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों पर चिंता जाहिर करते हुए दोहे प्रस्तुत कर कार्यक्रम का यादगार समापन किया- सभी सब्ज़ियों में अभी, लगी हुई है आग, गूंज उठा बरसात में, महंगाई का राग। कार्यक्रम का काव्यमय संचालन अर्चना पाठक और आभार संस्था के अध्यक्ष हरिशंकर सिंह ने जताया।
इस अवसर पर पेंशनर्स समाज के जयप्रकाश चैबे, त्रिलोचन यादव, रामखिलावन गुप्ता, एमडी सिंह, नरेन्द्र सिंह, एमएम मेहता, परहंस सिंह, रवीन्द्र तिवारी, नरेन्द्र सिंह, बलराम सिंह, डॉ. जीके अग्रवाल, शशिभूषण कुशवाहा, जीतेन्द्र सिंह, रविभूषण गुप्ता, अश्वनी श्रीवास्तव, आरएस कंवर सहित सभी सदस्य उपस्थित रहे।