अम्बिकापुर: जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव अमित जिन्दल ने बुधवार को केन्द्रीय जेल अंबिकापुर में आयोजित विधिक सेवा शिविर में बंदियों को विधिक जानकारी प्रदान करते हुए दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 में वर्ष 2005 में जोड़े गए संशोधन बताया।
उन्होंने बताया कि उभय पक्ष की उपस्थिति में न्यायालय द्वारा अभियुक्त का परीक्षण किए जाने पर न्यायालय को यह समाधान होने पर कि अभियुक्त द्वारा स्वेच्छा से आवेदन दाखिल किया गया है, वहाँ वह लोक अभियोजक या प्रकरण के परिवादी जैसी भी स्थिति हो, और अभियुक्त को प्रकरण का पारस्पारिक सन्तोषप्रद व्ययन करने जिसमें अभियुक्त द्वारा पीड़ित को प्रतिकर और प्रकरण के दौरान के अन्य व्यय का देना शामिल हो सकेगा के लिए समय प्रदान करेगा और तत्पश्चात् प्रकरण की अगली सुनवाई के लिए दिनांक नियत करेगा जिसमें बैठक में प्रकरण का संतोषप्रद व्ययन किया जाने पर न्यायालय को रिपोर्ट करने पर न्यायालय ऐसे व्ययन की रिपोर्ट तैयार करेगा तथा न्यायालय धारा 265 घ के अधीन वययन के अनुसार पीड़ित के लिए प्रतिकर अधिनिर्णित करेगा और दण्ड की मात्रा परिवीक्षा और सदाचार या धारा 360 के अधीन भर्त्सना के पश्चात् अभियुक्त को छोड़ने या अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 (1958 का 20 ) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के प्रावधानों के अधीन अभिमुक्ति पर विचार करने के लिए पक्षकारों को सुनेगा और अभियुक्त पर दण्ड अभिरोपित करने के लिए यदि पक्षकारों को सुनने के पश्चात् यदि न्यायालय की राय यह कि धारा 360 या अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 (958 का 20 ) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के प्रावधान अभियुक्त के प्रकरण में आकर्षित है, तो वह अभियुक्त को परिवीक्षा पर निर्मुक्त कर सकेगा, या किसी ऐसी विधि की प्रसुविधा दे सकेगा, तथा यदि पक्षकारों को सुनने के पश्चात् यदि न्यायालय इस निष्कर्ष पर है न्यूनतम दण्ड अभियुक्त द्वारा कारित अपराध के लिए विधि के अधीन उपबन्धित किया गया है, तो वह अभियुक्त को ऐसे न्यूनतम दण्ड के आधे दण्ड से दण्डित कर सकेगा अन्य दशा में वह अभियुक्त को ऐसे अपराध के लिए उपबन्धित या विस्तारित जैसी स्थिति हो, दण्ड के एक-चौथाई दण्ड से, ऐसे अपराध के लिए दण्डित कर सकेगा तथा न्यायालय अपना निर्णय धारा 265-ड के निबन्धन में खुले न्यायालय में देगा और उस पर न्यायालय के पीठासीन अधिकारी द्वारा हस्ताक्षर किये जायेंगे।