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रायपुर: मछलियां पकड़ने के लिए जब समूह में एकत्रित होते हैं तो सामूहिक जोश की अभिव्यक्ति होती है। असम में इसे सुंदर नृत्य रूप दिया गया है। परंपरा से यहां के लोग ला ली लांग नृत्य के माध्यम से इसे अभिव्यक्त करते हैं। कलाकारों के हाथ में मछली पकड़ने के जाल और टोकरियां होती हैं। फिर किस तरह से मछली का जाल पूरे तालाब में फैला दिया जाता है। इसे डालने से लेकर खींचने तक की मेहनत और हुनर को इस सुंदर लोक कला में दिखलाया गया है। ला ली लांग नृत्य का आयोजन असम के टेवा समुदाय द्वारा किया जाता है। यह खास आयोजन फसल कटाई के मौके पर किया जाता है। स्थानीय असमिया परिधानों में सजे हुए कलाकार ढोलक की थाप पर यह नृत्य करते हैं। साथ ही इस अवसर पर गाये जाने वाले लोकगीत भी गाते हैं। पूरा नृत्य दर्शकों को उत्साह से भर देता है और मछलियों के सामूहिक आखेट का दृश्य आँखों के सामने ला देता है।
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इस नृत्य के माध्यम से मत्स्याखेट की खास असमिया सामग्री भी दर्शकों को दिखती है। यह सामग्री बाँस से बनी टोकरियां हैं। इस नृत्य की खास बात नर्तकों के उत्साह में नजर आती है। मत्स्याखेट में सामूहिक श्रम और उत्साह काम आता है। समूह के द्वारा जब यह कार्य किया जाता है तो सामूहिक सहयोग से संभव हो पाता है। ला ली लांग नृत्य पूरे दृश्य को साकार कर देता है। राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में इस सुंदर नृत्य करने वाले कलाकारों को लोगों ने खूब सराहा।