रायपुर। शासकीय शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय, शंकर नगर में बीएड चतुर्थ सेमेस्टर के तहत एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का उद्देश्य तृतीय लिंग समुदाय के प्रति संवेदनशीलता और समानता की भावना को बढ़ावा देना था। इस कार्यक्रम का आयोजन सीटीई के प्राचार्य डॉ. योगेश शिवहरे के मार्गदर्शन में किया गया।

तृतीय लिंग समुदाय का परिचय और संघर्ष:

गरिमा गृह से जुड़े विद्या राजपूत, देव, और रवीना ने कार्यशाला में हिस्सा लेकर तृतीय लिंग समुदाय का इतिहास और उनके संघर्षों को साझा किया। डॉक्टर लता मिश्रा ने अपने वक्तव्य में कहा कि एक शिक्षक होने के नाते हमें तृतीय लिंग के बच्चों की पहचान कर उन्हें संरक्षण और सम्मान दिलाने की दिशा में काम करना चाहिए। उन्होंने बताया कि स्कूल, परिवार, और समाज मिलकर इन बच्चों के लिए सुरक्षित और सम्मानजनक वातावरण बना सकते हैं।

विद्या राजपूत, रवीना, और देव ने अपने बचपन से लेकर वर्तमान तक के संघर्षों को साझा किया। उन्होंने बताया कि तृतीय लिंग के बच्चों को शिक्षा और समाज में आने वाली बाधाओं से लड़ने के लिए शिक्षकों और संस्थाओं का सहयोग बेहद जरूरी है।कार्यशाला में तृतीय लिंग समुदाय की समस्याओं और उनके समाधान पर चर्चा की गई। बीएड के छात्राध्यापकों ने इस विषय पर कई सवाल पूछे और वक्ताओं ने उनके उत्तर देकर शंकाओं का समाधान किया। विद्या जी ने बताया कि 15 अप्रैल 2014 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा तृतीय लिंग को मान्यता दिए जाने के बाद उनके जीवन में काफी सुधार हुआ है। विद्या और रवीना ने बताया कि मितवा समिति के माध्यम से वे तृतीय लिंग समुदाय के अधिकारों और शिक्षा को लेकर जनजागरूकता अभियान चला रही हैं। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा 13 तृतीय लिंग व्यक्तियों को कांस्टेबल और 9 को बस्तर फाइटर के रूप में नियुक्ति दी गई है। यह उनके निरंतर संघर्ष का ही परिणाम है।

इस कार्यशाला के अंत में योगेश्वरी महाडिक ने वक्ताओं का आभार व्यक्त किया। इस कार्यक्रम में महाविद्यालय के सभी छात्राध्यापक और अकादमी सदस्य उपस्थित रहे। सभी ने तृतीय लिंग समुदाय के प्रति समानता और उदारता की भावना रखने का आह्वान किया।

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