बलरामपुर: जीवन और उसकी चुनौतियां हमेशा ही हमें कुछ नया करने का मकसद देती हैं। शायद यही चुनौतियां श्रीमती ममता सरकार को भी अपनी परिस्थितियों से लड़ने और कुछ नया करने का मकसद और हौंसला दे रही हैं, तभी वे अपने परिवार में आई विपत्ति का डटकर सामना कर रही हैं। पति के बीमार होने और पुत्र के मानसिक बीमारी से ग्रस्त होने के बावजूद अपनी परिस्थितियों से लड़ते हुए वे अपने जीवन में आगे बढ़ रही हैं। ऐसी पारिवारिक परिस्थितियां अक्सर मनुष्य के मनोबल को तोड़ कर रख देती हैं परन्तु ममता सरकार ने ऐसी परिस्थितियों से लड़ते हुए अपने पूरे परिवार का न केवल पालन-पोषण करने में सक्षम हुई हैं बल्कि अपने जीवन स्तर को भी बेहतर किया है और आज आत्मसम्मान के साथ जीवन-यापन कर रही हैं।
ममता सरकार के जीवन ने एक नया मोड़ तब लिया जब वह महिला स्व-सहायता समूह से जुड़ी। उन्होंने बताया कि वे जब अपने जिम्मेदारियों के निर्वहन के लिए नई दिशा की तलाश कर रही थी, तब उन्हें यह दिशा महिला स्व-सहायता समूह ने दिखाई। समूह के द्वारा ही उन्हें छत्तीसगढ़ शासन की योजनाओं के बारे में जानकारी मिली। उन्होंने समूह से जो कुछ भी सीखा और जाना, उसका लाभ लेकर आज वे अपनी ज़िम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन कर रही हैं।
जिले में बिहान योजना के तहत गठित महिला स्व-सहायता समूह की महिलाएं राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी गोधन न्याय योजनान्तर्गत निर्मित गौठानों में विभिन्न प्रकार की गतिविधियां कर आय संवर्धन कर रही हैं। स्व-सहायता समूह की महिलाएं समूह से ऋण लेकर न केवल पशु पालन कर रही हैं बल्कि गोबर बेचकर अच्छी-खासी आय भी कमा रही हैं। वे गौठान में वर्मी कम्पोष्ट का निर्माण कर अतिरिक्त लाभ भी ले रही हैं। इस तरह जिले की स्व-सहायता समूह की महिलाएं महिला किसान को परिभाषित करने का काम कर रही हैं। इस प्रकार महिलाओं द्वारा निर्मित वर्मी खाद से छत्तीसगढ़ जैविक खेती की ओर अग्रसर हो रहा है।
अपनी मेहनत के बल पर सफलता की नई कहानी लिखने वाली ममता सरकार तामेश्वरनगर ग्रामपंचायत के गुरू कृपा स्व-सहायता समूह से जुड़ी हुई हैं। ममता सरकार ने बिहान योजना के तहत् समूह से 05 हजार रूपये का व्यक्तिगत ऋण लेकर 01 एकड़ में सरसों की खेती की, जिसमें लगभग 2.50 क्विंटल सरसों का पैदावार लिया। सरसों को 46 रूपये प्रति किलो की दर से विक्रय कर लगभग 12 हजार रूपये अर्जित किया है साथ ही वे वर्तमान में मक्का की खेती भी कर रही हैं। इसी तरह उन्होंने सामूहिक बैंक ऋण लेकर पशुपालन भी कर रही हैं। उन्होंने गोबर को तामेश्वरनगर गौठान में बेच कर इस वर्ष 30 हजार रुपए की आमदनी भी की है। इसके साथ ही उन्होंने मुर्गी पालन एवं बकरी पालन कर सालाना लगभग 10 से 30 हजार रूपये की आय भी अर्जित कर रही हैं। ममता मेहनत की कीमत को बखुबी समझती है इसलिए वे मनरेगा के तहत् मजदूरी करके भी अच्छी आमदनी कमा लेती है।
ममता सरकार ने बताया की घर में मानसिक बीमारी से ग्रसित पुत्र और पति के इलाज में होने वाले खर्च का वहन भी वे अपनी इन्हीं आमदनियों से कर पाती हैं। 42 वर्षीय श्रीमती ममता स्वयं 5वीं कक्षा तक पढ़ाई की है लेकिन आज वह महिलाओं के लिए एक मिशाल पेश कर रही हैं कि विपरित परिस्थितियों में हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए बल्कि अपनी क्षमताओं को समेटकर जीवन में निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए। आज वे अपनी बेटी निशा सरकार के बेहतर भविष्य लिए उसे अच्छी शिक्षा दे पा रही है। उन्होंने अपनी बेटी को कोपा विषय से आईटीआई कराया और अभी वह बीएससी द्वितीय वर्ष में शासकीय महाविद्यालय में अध्यनरत् है। यह उनकी इच्छाशक्ति का अनुठा मिसाल है। उन्होंने अपनी सफलता का श्रेय बिहान योजना एवं छत्तीसगढ़ सरकार को देते हुए उनके प्रति आभार व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि ‘‘किस घर में तकलीफ नहीं होती है पर इसका मतलब यह नहीं है कि आजीविका का अवसर तलाशना बंद कर दें।