फर्जी बिलों का न देना पड़े कमीशन इसलिए सरपंच को ही बना दिया वेंडर
कुसमी/ कुंदन गुप्ता: जनपद पंचायत अंतर्गत ग्राम पंचायत हर्री में सरपंच व तत्कालीन सचिवो द्वारा शासकीय कार्यों के लिए विभिन्न मदो से मनमाने तरीके से राशि आहरण कर लिए हैं। जबकि गांव में कुछ भी काम नहीं हुआ है। लगभग 34 लाख रुपए राशि का गबन का ख़ुलासा सूचना के अधिकार से हुआ है। 14वाँ-15वाँ वित्त की राशि सरकार द्वारा सीधे पंचायतों के खाते में ग्राम पंचायत की मूलभूत आवश्यकता स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल, बिजली, सड़क, नाली व अन्य कार्यों के लिए दी जाती है। इसके लिए बाकायदा पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा कार्ययोजना तैयार की जाती है, लेकिन ग्राम हर्री के सरपंच व सचिव द्वारा मिलीभगत से कागजों में ही निर्माण दिखाकर राशि का आहरण कर हजम कर लिया है।
ग्राम पंचायत हर्री में सरपंच व तत्कालीन सचिवों द्वारा मिलीभगत कर 14वाँ और 15वाँ वित्त मद की करीब 34 लाख रूपए की राशि बंदरबाट कर लिया है। फर्जी बिलों पर कमीशन देना न पड़े इसलिए ग्राम के सरपंच को ही फर्जी वेंडर बनाकर लाखों रूपए खाते में ट्रांसफर किया गया है। जबकि पंचायत राज अधिनियम में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि ग्राम पंचायत के सरपंच, सचिव, पंच और उनके रिश्तेदार किसी तरह का आर्थिक लाभ ग्राम पंचायत से नहीं ले सकते। लेकिन इन नियमो को ठेंगा दिखाते हुए हर्री ग्राम पंचायत के महिला सरपंच की कस्तूरबा गांधी स्कूल में पढ़ने वाली बच्ची के नाम से दिव्या जनरल स्टोर फर्म में लाखों रूपए का भुगतान निकाले गये और पंचायत राज अधिनियम की खुलेआम धज्जियां उड़ाई गई। जबकि उक्त फ़र्म या दुकान गाँव में है ही नही। इतनी बड़ी लापरवाही पर आज तक किसी ने ध्यान भी नहीं दिया। इसमें जनपद के अधिकारियों की भी मिलीभगत है इसलिए यह काम आसानी से हो जाते हैं। चर्चा है कि अगर सरपंच की फर्म के खरीदी-बिक्री की जांच हो जाये तो, चौकाने वाले तथ्य सामने आएंगे।
सालों पहले राशि आहरण होने के बाद भी यह कार्य मौके पर नहीं हुए
ग्राम पंचायतों में सरकारी पैसे के गबन को रोकने के लिए जितने प्रयास हुए, उससे कहीं ज्यादा पंचायत के जिम्मेदारों ने आर्थिक गड़बड़ी की है। पंचायतों में फर्जीवाड़ा इस स्तर तक हुआ कि सीमेंट, रेत, सरिया से लेकर अन्य सामग्री का बिल सरपंच सहित अन्य जिम्मेदारों ने ग्राम पंचायत में फर्जी फर्म तैयार कर खूब मलाई छानी। ग्राम पंचायत में 14वाँ व 15वाँ वित्त मद से मेन रोड से पीएस बकसपुर तक सीसी रोड निर्माण, पुलिया निर्माण, चबूतरा निर्माण, घाट कटिंग, मोटर पंप इत्यादि में खर्च होना सूचना के अधिकार में जानकारी बताई गई हैं। लेकिन राशि आहरण करने के बाद भी कई काम अधूरे या मौके पर कोई निर्माण नहीं हुआ। उक्त निर्माण कार्यों का फर्जी प्रस्ताव बनाकर राशि आहरण कर लिया गया हैं। वही उक्त निर्माण कार्यों का मूल्यांकन भी नही कराया गया है। मामला उजागर होने के बाद इंजीनियर से बेक डेट से मूल्यांकन के लिए चक्कर लगाया जा रहा है।
यह होते हैं वेंडर के नियम
कोई भी व्यक्ति या फर्म अपनी दुकान की सामग्री यदि ग्राम पंचायतों में सप्लाई करना चाहता है तो उसे सबसे पहले जीएसटी नंबर लेना पड़ता है। उसके बाद जिला पंचायत में आवेदन होता है फिर वह आवेदन जनपद आता है। यहां जनपद के सभी अधिकारी उनकी सामग्री का सत्यापन करते हैं। वही पंचायत राज अधिनियम के अनुसार ग्राम पंचायत के सरपंच, सचिव, पंच और उनके रिश्तेदार किसी तरह का आर्थिक लाभ ग्राम पंचायत से नहीं ले सकते।लेकिन जपं कुसमी में कई ऐसे सप्लायर है जिनका न कोई दुकान हैं न ही वह सामग्री। उसके बाद भी इनके बिल लग रहे हैं क्योंकि इन बेंडर धारियों को बढ़ावा देने वाले जनपद के ही अधिकारी हैं जो बिना दुकान का निरीक्षण किए इनको वेंडर सप्लायर के लिए हरी झंडी दे देते हैं।
मॉनिटरिंग नहीं हो पा रही इसलिए गड़बड़ी
केंद्र सरकार द्वारा आबंटित 14वें व 15वें वित्त आयोग की राशि का आबंटन सीधे पंचायत के खाते में किया जाता है। सरपंच व सचिव बिल के माध्यम से पहले से पंजीकृत सप्लायर के खाते में ट्रांसफर की जाती है। नियमानुसार इस मद से 50 हजार से अधिक की राशि व्यय करने के लिए एस्टीमेट और मूल्यांकन आवश्यक है। परंतु जपं क्षेत्र की किसी भी पंचायत में इस नियम का पालन नहीं किया जाता। राशि सीधे सप्लायर के खाते में पीएमएमएस के माध्यम से डाल दी जाती है, जिसका व्यय से संबंधित ब्यौरा में केवल बिल ही प्रस्तुत किया जाता है। ऑडिट नहीं होने से सरपंच सचिव हस्ताक्षर कर मनमाने रुपए निकालते हैं।
रीता यादव, सीईओ जिला पंचायत बलरामपुर| ग्राम पंचायत के सप्लायर (वेंडर) सरपंच नही हो सकते। मामले की जाँच के लिए सीईओ जनपद पंचायत को बोलती हूँ। वही ग्राम हर्री की सरपंच उमावंती पैकरा को फ़ोन लगाया गया, परंतु उनका फ़ोन बंद था।