कोरबा। रजनी को बचपन से ही गुलाब के फूलों से प्यार था। वह जब कहीं जाती तो फूलों के पौधे घर के लिए ले आती। घर के आँगन में गमलों पर वह खूबसूरत गुलाब के पौधे अक्सर लगाया करती थीं। गुलाब के पौधों और फूलों से प्यार करने वाली रजनी जब शादी होकर ससुराल आई तब भी उनका मोह फूलों के प्रति बना रहा। कई बार वह फूलों की खेती के लिए मन में सोची, लेकिन सोच को हकीकत में नहीं बदल पाई। अपनी इस ख़्वाहिश को पूरा करने की कोशिश में जुटी रजनी का सपना आखिरकार उसके मजबूत इरादों के साथ पूरा हो गया। उन्होंने हिम्मत जुटाई और अपनी खाली पड़ी जमीन पर गुलाब के पौधों की ऐसी खेती कर डाली कि उसकी खूबसूरती और खुशबू दूर-दूर तक फैल रही है। इस गुलाब की खुशबू और खूबसूरती को निहारने लोग यहाँ खींचे चले आ रहे हैं…।

आज के समय में पारंपरिक खेती की तुलना में बागवानी या फूलों की खेती किसानों के लिए अधिक मुनाफा देने वाली खेती साबित हो रही है। मुख्य रूप से गुलाब की खेती की तरफ किसानों का रुझान बढ़ रहा है। गुलाब की मांग पूरे वर्ष बनी रहती है। साथ ही त्योहारों, शादी समारोह व विभिन्न आयोजनों के समय इसकी मांग काफी बढ़ जाती है। धान की पैदावार के लिए पहचान रखने वाले छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के कटघोरा विकासखण्ड की कुमगरी की रहने वाली रजनी कंवर ने गुलाब की खेती करके एक मिसाल कायम की है और दूसरे किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बनी है। रजनी ने विभागीय सहायता से डच रोज़ की खेती शुरू की और आज 30 हजार से अधिक की प्रतिमाह कमाई कर रही हैं। पिछले 5 माह में ही उसे 3 लाख से अधिक रूपए का शुद्ध मुनाफा हुआ है।

कुछ नया करने के इरादे ने रजनी का डच रोज़ की खेती की तरफ बढ़ाया रुचि

रजनी बताती हैं कि वर्तमान समय में किसान को बेमौसम बारिश, तूफान, अतिवृष्टि, सूखा जैसी कई प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है साथ ही विभिन्न प्रकार के कीटों व बीमारियों से अपनी फसलों की रक्षा करनी पड़ती है। इतनी परेशनियों के बाद भी किसान को अपेक्षाकृत अधिक लाभ नहीं होता। उनके द्वारा पूर्व में भी अपनी जमीन पर धान की फसल उगाया जाता था, जिससे उन्हें अधिक आमदनी नही होती थी। रजनी व उनके पति जय सिंह ने परम्परागत कृषि से अलग आधुनिक खेती कर अपने आय में वृद्धि करने की सोची। इसी दौरान लाभार्थी को नेशनल हार्टिकल्चर बोर्ड द्वारा डच रोज़ की खेती की जानकारी मिली। डच रोज़ कल्टीवेशन से लंबे समय तके होने वाले लाभ की सोच से उन्होंने इसका खेती करने का निश्चय किया और अपने जमीन पर पाली हॉउस तैयार कर गुलाब की खेती प्रारंभ की। उद्यानिकी विभाग द्वारा उनके हौसले को बढ़ाते हुए समय पर दस्तावेजों की पूर्ति कराई गई एवं नाबार्ड द्वारा 40 लाख का वित्तीय सहयोग प्रदान किया गया। जिसमें उन्हें 50 प्रतिशत अनुदान भी दिया जा रहा है। साथ ही पॉली हाऊस में ड्रिप, बोर, स्टोरेज रूम जैसी सुविधाएं भी प्रदान की गई है। समय समय पर विभाग द्वारा रजनी को आवश्यक मार्गदर्शन भी प्रदान किया जाता है। रजनी द्वारा फरवरी 2024 में अपने 2600 वर्गमीटर लगभग 65 डिसमिल जमीन पर पॉली हाऊस का निर्माण कराकर डच रोज़ की खेती प्रारंभ की गई। जहां उन्होंने इसकी 22000 पौधे का प्लांटेशन किया। पॉली हाऊस के अंदर डच रोज़ की खेती करने से पौधों को सीधे सूर्य की रौशनी, बारिश, आंधी से सुरक्षा मिलती है। सूक्ष्म सिंचाई और टपक विधि से कम पानी में गुलाब की खेती में सफलता प्राप्त हो रही है। रजनी द्वारा किए गए गुलाब की खेती को देखने के लिए दूर-दूर से लोग भी आते हैं।

गुलाब की खेती में है भारी मुनाफे की संभावना

रजनी ने बताया कि गुलाब की खेती से लाभ की काफी संभावनाएं हैं। गुलाब दुनिया की खूबसूरत फूलों में से एक है। जिसकी मांग आज हर जगह है। गुलाब के फूलों की मांग साल भर बनी रहती है। पूजा, अराधना, जन्मदिन, शादी व्याह सहित अन्य अवसरों पर गुलाब के फूलों का उपयोग डेकोरेशन के लिए किया जाता है। साथ ही गुलाब के सूखे फूलों से गुलकंद बनाया जाता है व गुलाब जल का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन के रूप में किया जाता है।

स्थानीय स्तर पर 5-7 लोगों को दे रही रोजगार

रजनी के फॉर्म पर पौधों की देखरेख, कटाई छटाई, पैकेजिंग जैसे कार्यो के लिए 5-7 व्यक्ति नियमित काम करते है। जिससे स्थानीय स्तर पर लोगों को नियमित रोजगार मिल रही है। उन्हें कार्य करने के लिए अन्यत्र नही जाना पड़ता। प्लांटेशन के 2 माह के अंदर ही डच रोज से उत्पादन शुरू हो गया है। उनके फॉर्म में प्रतिदिन 40 से 50 किलो गुलाब कल्टीवेशन किए जाते है। मजदूरों द्वारा इन गुलाब को तोड़कर डिमांड अनुसार पैकेजिंग व सप्लाई किया जाता है। रजनी ने बताया कि इन पौधों की ठीक ढंग से देखभाल करने से इनसे 2-3 साल तक उत्पादन लिया जा सकता है। जिससे लंबे समय तक पौधों से लाभ मिलेगा।

गुलाब के उत्पादन के शुरुआत से ही बाजार में इसकी मांग आने से रजनी का उत्साह बढ़ा हुआ है। अपनी खुशी जाहिर करते हुए वे कहती है कि अपने पति  जयसिंह के सहयोग व विभागीय मदद से उन्होंने डच रोज की खेती करने का बड़ा फैसला लिया है। जिसका अब उन्हें लाभ मिल रहा है। प्रतिमाह उसे मजदूरी भुगतान, दवाई, खाद सभी खर्चों के बाद भी औसतन 30-40 हजार तक का लाभ हो रहा है। वर्तमान में उनके द्वारा कोरबा, बिलासपुर, अम्बिकापुर में फूलो का विक्रय किया जा रहा है। साथ ही उनके द्वारा इवेंट ऑर्गेनाइजर, डेकोरेशन शॉप्स वालों से भी संपर्क किया जा रहा है। जिससे आगे चलकर बड़े पैमानों पर गुलाब का विक्रय किया जा सके। आने वाले त्यौहारों व शादी सीजन में बाजारों में फूलो की मांग बढ़ेगी जिससे उनके आय में और अधिक वृद्धि होगी।

Leave a reply

Please enter your name here
Please enter your comment!