रायपुर: छत्तीसगढ़ में पिछले 10 साल में आरक्षण का दायरा 58 प्रतिशत से बढ़कर 72 प्रतिशत तक पहुंच गया था। बिलासपुर हाई कोर्ट ने 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण को असंवैधानिक माना है। कोर्ट के फैसले के बाद पूर्ववर्ती भाजपा सरकार और सत्तारुढ़ कांग्रेस भी बढ़े आरक्षण पर सवालों के घेरे में है। तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 32 प्रतिशत, अनुसूचित जाति (एससी) के लिए 12 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 14 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की थी। इससे पहले एससी वर्ग को 16 प्रतिशत आरक्षण मिलता था, जिसे घटाकर 12 प्रतिशत कर दिया गया।
वहीं, एसटी वर्ग के 20 प्रतिशत आरक्षण को बढ़ाकर 32 प्रतिशत कर दिया गया। बाद में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ओबीसी आरक्षण को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत और एससी वर्ग के आरक्षण को 12 प्रतिशत से बढ़ाकर 13 प्रतिशत करने की घोषणा की। कांग्रेस सरकार में बढ़े आरक्षण का मामला भी हाई कोर्ट में है।
छत्तीसगढ़ के महाअधिवक्ता (एजी) सतीश चंद्र वर्मा ने बताया कि हाई कोर्ट ने अनुसूचित जाति के आरक्षण को कम करने की याचिका पर निर्णय दिया है। इस निर्णय के बाद प्रदेश में वर्तमान स्थिति में एसटी और एससी वर्ग को वर्ष 2012 से पहले की तरह आरक्षण मिलेगा। वर्ष 2012 से अब तक हुई सरकारी भर्ती में जिस आरक्षण फार्मूले का पालन किया गया, उसमें कोर्ट ने बदलाव का कोई नियम नहीं दिया है।
हाई कोर्ट का निर्णय ओबीसी आरक्षण को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने पर नहीं आया है। इस मामले में अभी सुनवाई शुरू नहीं हो पाई है। विधि विशेषज्ञों की मानें तो सरकार जब तक सुप्रीम कोर्ट नहीं जाती है, तब तक एससी वर्ग को 16 प्रतिशत और एसटी वर्ग को 20 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा।