जगदलपुर: छत्तीसगढ़ के बस्तर में कहावत है कि पानी बिना मछली और जंगल बिना आदिवासी की कल्पना नहीं की जा सकती. जंगल मनुष्य के जीवन के लिए सबसे ज्यादा उपयोगी हैं और इस जंगल को देवता मानते हुए बुजुर्ग आदिवासी ग्रामीण ने अपने जीवन का पूरा समय जंगल बनाने और उसकी रक्षा करने में लगा दिया. 78 साल के दामोदर कश्यप की उपलब्धि ये है कि इन्होंने अपना पूरा जीवन पर्यावरण को समर्पित कर दिया. दामोदर ने अब तक गांव वालों के सहयोग से लगभग 400 एकड़ से अधिक जमीन पर घना जंगल तैयार कर दिया है.

आपको बता दे कि दामोदर कश्यप बस्तर के संघ करमरी गांव का वो नाम है जिसने अपना जीवन पर्यावरण को समर्पित कर दिया है । इस कर्मयोगी ने 400 एकड़ के मैदान को जंगल में किया परिवर्तित।छग और ओडिसा सीमा से लगे संघ करमरी के बायकागुड़ा पारा के निवासी दामोदर जब 1970 में 12 वीं की पढ़ाई कर वापस गांव लौटे तो यहां के जंगल को ठूठ के रूप में देख उनके मन में हूक सी उठी और उन्होंने उसी क्षण तय कर लिया कि वे जंगल को वास्तविक स्वरूप देने में कोई कसर नहीं रखेंगे।इसके बाद अपना हाथ जगन्नाथ की तर्ज पर उन्होंने काम करना शुरू किया । क्योंकि जंगल लगाने की जगह अपनी जरूरतों के लिए वहां से लकड़ी काटकर लाना गांववालों की मजबूरी थी और इस पर प्रतिबन्ध का विरोध दामोदर को झेलना पड़ा।

फिर भी दामोदर बिना विचलित हुए जंगल बचाने और पौधरोपण में जुटे रहे।उंनकी मेहनत रंग लाई और मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर।लोग जुड़ते गए और कारवां बनता गया ।अंततः उनके काम को ग्रामीणों ने समझा। लेकिन उसे वास्तविक रफ्तार तब मिली जब 1977 में उन्हें सरपंच चुना गया । इसके बाद उन्होंने जंगल बचाने और नए पौधे लगाने को लेकर सख्त नियम बनाये ।
अर्थदंड का प्रावधान भी रखा गया । जिसकी वजह से ग्रामीण भी आगे आये। पंचायत में जो नियम बनाये गए उसे ठेंगा पाली का नाम दिया जिसका अर्थ होता है ठेंगा यानी डंडा , पाली याने पारी । इस नियम के तहत गांव के तीन सदस्य डंडा लेकर जंगल की सुरक्षा में दिन रात बारी बारी से लगे रहते ।

जंगल की सुरक्षा के लिए धार्मिक आस्था का सहारा भी लिया गया। ग्राम देवता से अनुनय विनय बाद उनका लाट ( देव का डंडा ) भी गांव और आसपास के इलाके में लगातार घुमाया जाता रहा। जिससे ग्रामीण जंगल को नुकसान पहुंचाने से बचने लगे ।आज हालात यह है कि 400 एकड़ का जंगल शान से खड़ा लहलहा रहा है जिसकी गूंज देश प्रदेश और विदेशों तक भी है।भारत सरकार ने दामोदर को कंजर्वेशन कोर एवार्ड से सम्मानित भी किया है ।दामोदर को लेकर 9वीं कक्षा के सामाजिक विज्ञान विषय में एक चेप्टर भी पढ़ाया जा रहा है।इतनी उपलब्धियों के बाद भी दामोदर किसी तरह के श्रेय की अभिलाषा नहीं रखते।जबकि उन लोगों में श्रेय लेने और प्रसिद्धि पाने की ललक हमेशा दिखती है जिन्होंने कभी एक तिनका तक नहीं रोपा है।

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