अंबिकापुर: सरगुजा जिले के बतौली ब्लाक के ग्राम पंचायत चिरंगा में प्रस्तावित मां कुदरगढ़ी एल्युमीनियम रिफाइनरी फैक्ट्री का यहां के ग्रामीण शुरू से विरोध कर रहे हैं। ग्रामीण आरोप लगा रहे हैं कि फैक्ट्री प्रबंधन ने फर्जी तरीके से ग्राम सभा का आयोजन कर प्रस्ताव पारित करवा लिया। अब मामले में हाईकोर्ट के निर्देश के बाद जांच की केवल औपचारिकता पूरी की जा रही है।
जनसुनवाई में जमकर हुआ था विरोध
पूर्व में इस फैक्ट्री की स्थापना के लिए जनसुनवाई का आयोजन किया गया था, तब यहां के प्रभावित 7 पंचायत के ग्रामीणों का जबरदस्त विरोध देखने को मिला था। जन सुनवाई के दौरान आक्रोशित ग्रामीणों ने फैक्टरी प्रबंधन के अधिकारियों-कर्मचारियों की पिटाई भी कर दी थी, मगर फैक्ट्री प्रबंधन के रसूख के आगे ग्रामीणों की एक नहीं चली।
विरोध के बावजूद जमीन कर दी एलॉट
एल्युमीनियम रिफाइनरी की इस फैक्ट्री का प्रारम्भ से ही विरोध रहा है। इसकी जनसुनवाई में ग्रामीणों का रौद्र रूप भी देखने को मिला, बावजूद इसके शासकीय भूमि जो कि शासन ने छत्तीसगढ़ इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन CSIDC को एलॉट किया था, उक्त भूमि को मां कुदरगढ़ी एल्युमीनियम रिफाइनरी फैक्ट्री के डायरेक्टर अनिल अग्रवाल के नाम 31 मार्च 2022 को नामांतरण करवा लिया। प्रस्तावित फैक्ट्री के खिलाफ एक बार फिर आवाज बुलंद कर ग्रामीण विरोध पर उतारू हैं।
बाहरी लोगों के नाम जमीनों की खरीदी
ग्राम चिरंगा में प्रस्तावित मां कुदरगढ़ी एल्युमीनियम रिफाइनरी फैक्ट्री को शुरू कराने के लिए प्रबंधन ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। यहां आदिवासियों की सेटलमेंट की जमीन, पट्टे की भूमि गोचर की भूमि सहित अन्य मदों की भूमि को फैक्ट्री प्रबंधन अधिकारियों से मिलीभगत कर बाहरी लोगों के नाम पर धड़ल्ले से खरीद रहा है। स्थानीय ग्रामीणों के विरोध के बावजूद चिरंगा ग्राम पंचायत में जमीन की खरीदी बिक्री पर रोक लगती नहीं दिख रही है, जिसका सीधा फायदा फैक्ट्री प्रबंधन को मिल रहा है। बता दें कि यह इलाका पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत आता है और यहां इस तरीके से जमीन की खरी-बिक्री नहीं की जा सकती।
फर्जी ग्राम सभा की जांच के तरीके का विरोध
आरोप है कि ग्राम पंचायत चिरंगा में प्रस्तावित फैक्ट्री की स्थापना के लिए प्रबंधन ने फर्जी तरीके से ग्राम सभा का आयोजन करवा कर प्रस्ताव भी पारित करवा लिया है। वहीं जब इसकी जानकारी ग्रामीणों को लगी तब वे हाईकोर्ट की शरण में गए। इधर हाईकोर्ट के निर्देश के बाद कलेक्टर सरगुजा ने ग्राम सभा की जांच का जिम्मा एसडीएम सीतापुर को दे दिया। लेकिन एसडीएम की जांच प्रक्रिया पर ग्रामीण लगातार सवाल उठा रहे हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि फैक्ट्री प्रबंधन के इशारों पर अधिकारी ने पूरे मामले की जांच के लिए ग्राम पंचायत में नहीं जा कर 10-15 ग्रामीणों को एसडीएम ऑफिस बुला कर उनका बयान लिया है, ऐसे में जांच प्रक्रिया कैसे निष्पक्ष हो सकती है।
विरोध प्रदर्शन पड़ा महंगा
सरगुजा की हरी-भरी वादियों के बीच लगने जा रहे इस प्लांट के विरोध में धरना प्रदर्शन, चक्का जाम, तहसील कार्यालय का घेराव करना ग्रामीणों को महंगा पड़ गया। कई ग्रामीणों के खिलाफ पुलिस ने एफआईआर दर्ज भी किया। हालांकि ग्रामीण आज भी फैक्ट्री के विरोध में आंदोलन करने से पीछे नहीं हट रहे हैं। ग्रामीण लगभग हर रोज हाथों में तख्तियां लेकर प्लांट के विरोध में रैली निकाल रहे हैं और अनुसूचित क्षेत्र में पेसा जैसे कानून का पालन करते हुए प्लांट को ग्रामसभा की अनुमति के बिना स्थापित नहीं करने की मांग कर रहे हैं।
मंत्री का विरोध भी बेअसर
बता दें कि सरगुजा का यह इलाका खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री अमरजीत भगत के विधानसभा क्षेत्र में आता है। पूर्व में ग्राम चिरंगा में प्रस्तावित मां कुदरगढ़ी एल्युमीनियम रिफाइनरी फैक्ट्री का पूर्व मंत्री और भाजपा नेता गणेशराम भगत की अगुवाई में ग्रामीणों ने विरोध शुरू किया था। ग्रामीणों ने अपने इलाके के विधायक और मंत्री अमरजीत भगत से भी समर्थन मांगा, मगर वे इस मामले में तटस्थ रहे। हालांकि उग्र विरोध को देखते हुए उन्होंने प्रदेश के मुखिया को पत्र लिखकर कहा कि ग्रामीण इस प्लांट का विरोध कर रहे हैं, इस विरोध का नुकसान उन्हें और पार्टी को होगा, इसलिए रिफायनरी प्लांट को अनुमति न दी जाये। तब माना जा रहा था कि प्रस्तावित प्लांट ठन्डे बास्ते में चला जायेगा, मगर फ़िलहाल ऐसा नजर नहीं आ रहा है और न ही मंत्री विरोध करते हुए दिख रहे हैं।
दूसरे रिफायनरी प्लांट का भी विरोध
दरअसल इसी क्षेत्र में एक छोटा एल्युमीनियम रिफाइनरी प्लांट ग्राम सिलसिला में पहले से ही चल रहा है। इस यूनिट से निकलने वाले प्रदूषण को देखते हुए ग्रामीण इस प्लांट का भी विरोध कर रहे हैं। वहीं भविष्य में उनका इलाका और भी प्रदूषित न हो इसकी चिंता करते हुए ग्रामीण नए प्लांट का भी विरोध कर रहे हैं, मगर इन्हें इस बात की नाराजगी है कि इलाके के 7 गांवों के पुरजोर विरोध के बावजूद न तो जनप्रतिनिधि उनका साथ दे रहे हैं और न ही प्रशासन।