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अंबिकापुर: परसा ईस्ट केते बासेन के बंद होने के बाद यहां के ग्रामीणों ने खदान विरोधी अंदोलनकारियों से सवाल किया है कि अब उनका विस्थापन होगा या विकास होगा यही चिंता हालाँकि अब सुरगुजा के व्यापारियों को भी होने लगी है। और हो भी क्यों न ?
यहां के खदान में कार्यरत और स्थानीय निवासी राजेश यादव और नितेश कुमार और इनके कई साथियों द्वारा बड़े ही दुःखी मन से क्षेत्र के विधायक को उनकी नौकरी के साथ ही मिलने वाले अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य इत्यादि से वंछित होने की बात कहकर उसे बचाने का अनुरोध किया जा रहा है। और अब खदान बंद होने पर उनको रोजगार की तलाश में पुनः गांव से विस्थापन करना होगा।
आरआरवीयूएनएल के जिस पीईकेबी खुली खदान में 5000 अधिक स्थानीय लोग पिछले एक दशक से नौकरी कर अपने परिवार का भरण पोषण कर फल – फूल रहे हैं, और जिसके कारण अंचल के व्यापार के दायरे बढ़ गए थे। तथा जो गांव देश के मानचित्र में कोयला खदानों के लिए पहचाना जाने लगा था। उन क्षेत्रों के विकास को अब ग्रहण लगने वाला है। जी हाँ जिले की उदयपुर विकासखंड की यह पीईकेबी खुली खदान परियोजना में खनन का कार्य गत 15 दिनों से थम गया है और रोजगार पर गहरा असर पड़ा है। वहीं इससे अंचल के आदिवासी जो उनके क्षेत्र में हुए विकास की मुख्यधारा से परिचित हो चुके थे और अब वे विकसित भारत को ओर अपना कदम बढ़ाने लगे थे और जिससे सरगुजा के जिला मुख्यालय सहित आस पास के ग्रामों के व्यापारियों को भी आर्थिक गतिविधियों में तेजी से विकास होने लगा था।
इन विकासात्मक गतिविधियों के अलावा सुरगुजा जिला जो की आज एक निर्णायक मुकाम पर खड़ा है। जहां जिले के परसा और बासेन गाँव जिसके भीतर कोयले का अथाह भण्डार है वहां आज मायूसी फैली हुई है। वर्ष 2013 में जब राजस्थान राज्य विद्युत् उत्पादन निगम लिमिटेड (आरआरवीयूएनएल) को परसा ईस्ट और केते बासेन कोल ब्लॉकों का आवंटन भारत सरकार द्वारा किया गया, तबसे स्थानीय गाँवों और जिले में एक रौनक आयी हुई थी। अपने घर के पास रोजगार मिलने से जिनके परिवारों को स्थिरता मिली। साथ ही जब पहली बार खेती के सिवाय नियमित आय का मौका मिला और जिसके चलते जिले और क्षेत्र के बाजारों में इन नौ वर्षों में में विकास की जो लहर बह रही है वह पहले नहीं थी। क्षेत्र जो आदिवासी बहुल है, यहां के लोगों को ‘विकास की परिभाषा क्या होती है’ का अब भलीभांति ज्ञान हो चुका है।
राजस्थान के निगम को आवंटित परसा ईस्ट और केते बासेन (पीईकेबी) कोल ब्लॉक जिसमें ग्राम परसा, साल्हि, बासेन, घाटबर्रा इत्यादि सहित कुल 14 ग्राम आते हैं, द्वारा सामाजिक सरोकारों के अंतर्गत कई तरह के विकासात्मक कार्य संचालित हैं। जिनमें मुख्यरूप से गुणवत्तायुक्त शिक्षा के क्षेत्र में बच्चों और युवाओं के लिए केंद्रीय शिक्षण बोर्ड पर आधारित उच्चतर माध्यमिक की पढ़ाई तथा कौशल विकास केंद्र, स्वास्थ्य सेवाओं में क्लिनिक तथा चलित स्वास्थ्य वाहन से उन्हीं के ग्रामों में स्वास्थ्य परामर्श और निःशुल्क दवाइयों का वितरण, आजीविका संवर्धन में स्थानियों को रोजगार और स्वरोजगार में स्थानीय महिलाओं को उद्यमिता विकास में सहायता तथा ग्रामीण अधोसंरचना संरचना विकास में शुद्ध पेयजल, बंद पड़े हैंड पंपों को सुधारना, तालाबों का गहरीकरण और सौंदर्यीकरण, रोड नाली इत्यादि के साथ-साथ कृषि के आधुनिक तकनीकियों से किसानों की आय में वृद्धि इत्यादि शामिल है।
पीईकेबी को विगत कई माह से सभी जरूरी अनुमति मिलने के पश्चात भी यहां खनन के दूसरे चरण का कार्य शुरू नहीं किया जा सका है। जिसकी वजह से राजस्थान सरकार के निगम की खनन और विकास प्रचालक (एमडीओ) कंपनी द्वारा कोयला लोडिंग के कुल करार को ठेका कंपनी के कार्य में कटौती करना शुरू कर दिया गया है। जिस खुली कोयला खदान में हजारों लोगों को प्रत्यक्ष रूप से पिछले एक दशक से रोजगार प्राप्त है और इससे दो गुने लोग अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न स्वरोजगारों से जुड़े हुए हैं। उन्हें अब खदान के बंद होने से एक बार फिर रोजगार का मुद्दा गहराने लगा है। अब चूंकि ठेका कंपनियों में कर्मचारी स्थानीय ग्रामीण ही हैं जिन्हें नौकरी मिली है। उन्हें भी कर्मचारियों की छुट्टी करनी पड़ रही है। नतीजतन ऐसे ग्रामीण जिन्हें नोटिस मिल चुका है वे सब अब सरकार से खदान को चलाये रखने की अपील कर मदद की गुहार लगा रहे है।
पिछले कई महीनों से कुछ तथाकथित एनजीओ द्वारा क्षेत्र के बाहरी लोगों के साथ इस खदान का विरोध किया जा रहा है। और जिसे बंद कराने के मुहिम के लिए पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है क्या वे सरगुजा जिले को होने वाले कई गुना वित्तीय हानि की भरपाई करने को तैयार हैं। और क्या वे खदान बंद होने के कारण हुए बेरोजगारों को पुनः रोजगार दिलाएंगे। यही नहीं पिछले एक दशक से क्षेत्र के विकासात्मक गतिविधियों का सुचारु रूप संचालन का क्या खाका इन आंदोलनकारियों ने बनाया है को भी स्थानीय जनता और अंचल के निवासियों के साथ साझा करना चाहिए। पर्यावरणविद कहे जाने वाले लोग क्या सरगुजा संभाग में एक उद्योग के आने से होने वाले फायदों से जिले को मुक्त कराना चाहते हैं। या फिर यहां के जंगलों में दक्षिण भारत या बस्तर में मौजूद गतिविधियों के लिए विस्थापन का रास्ता बनाने के लिए कोई षड़यंत्र रचने की तैयारी कर रहे हैं। यह एक गंभीर चिंतन का विषय है। और जिसे परियोजना का विरोध कर रहे इन आंदोलनकारियों को अंचल और प्रदेश की जनता को अब सच बताना ही होगा।
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