राजनांदगांव। जिले में राज्य सरकार की महत्वपूर्ण योजना नरवा गरवा घुरवा बाड़ी का क्रियान्वयन पूरी लगन के साथ नहीं किया जा रहा है। ऐसा हम इसलिए कह रहे है क्योंकि एक ओर प्रशासन योजना के तहत गांव-गांव में गौठान बना रही है, तो दूसरी ओर गौवंश के संरक्षण में कोताही बरती जा रही है। ऐसा ही एक मामला सामने आया है जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर गातापार गांव में। यहां चारा-पानी की व्यवस्था के बिना गौशाला का संचालन किया जा रहा है। वो भी लंबे समय से। गंभीर बात ये है कि इसकी जानकारी पशु चिकित्सा विभाग के डॉक्टर और अफसरों को थी, लेकिन उन्होंने समय पर मामले के निराकरण का प्रयास नहीं किया। समय बीतने के साथ पर्याप्त व्यवस्था के अभाव में इस गौशाला में गौवंश की जिंदगी खतरें में पड़ गई। ग्रामीणों ने मामले की जानकारी शिवसेना को दी। जानकारी मिलते ही शिवसेना के पदाधिकारियों ने पहले तो मौके पर जाकर गौशाला की व्यवस्था देखी फिर शुक्रवार को कलेक्टर, पशु चिकित्सा विभाग के अधिकारियों को ज्ञापन सौंपा।
शिवसेना जिला प्रमुख कमल सोनी, जिला उपाध्यक्ष मोहन सिन्हा, जिला सचिव केके श्रीवास्तव और विधानसभा अध्यक्ष आकाश सोनी ने संयुक्त रूप से बताया कि राजनांदगांव से 14 किलोमीटर दूर ग्राम गातापार में ग्रामीण युवक द्वारा जय लक्ष्मी गौशाला नाम से अघोषित गौशाला का संचालन किया जा रहा है। जहाँ पर्याप्त चारा-पानी और ठंड और बारिश से बचाने के लिए कोई साधन नहीं है। इस गौशाला में पिछले दिनों भूख से कुछ गायों की मौत की शिकायतें भी मिल रही है। पदाधिकारियों ने जल्द से जल्द गायों के लिए उचित और सुरक्षित स्थान की व्यवस्था कराने की मांग की।
दोपहर को निरीक्षण करने पहुंचे अधिकारी
शिवसेना द्वारा ज्ञापन सौपने के बाद शुक्रवार दोपहर को पशु चिकित्सा विभाग के दो अधिकारी गौशाला का निरीक्षण करने पहुंचे। अधिकारियों के साथ शिवसेना के पदाधिकारी भी थे। अधिकारी गौशाला का हाल देखकर दंग रह गए। उन्होंने गौशाला संचालक को समझाईश दी कि जब उनके पास पर्याप्त व्यवस्था नहीं है तो वे मवेशियों को न रखें। अधिकारियों ने आश्वासन दिया कि वे जल्द ही गायों को उचित स्थान पर शिफ्ट करवा देंगे।
इस मामले में अफसरों की लापरवाही-शिवसेना
शिवसेना के जिला प्रमुख श्री सोनी और उपाध्यक्ष सिन्हा ने कहा कि इस मामले में गौशाला संचालक की गलती नहीं है। उसने गौवंश के संरक्षण की दिशा में पहल की थी, मौके पर व्यवस्था के हिसाब से 5 से 10 गायों को रखकर सेवा कार्य किया जा सकता है। ज्यादा संख्या में मवेशी रखने से व्यवस्था बिगड़ गई। इस बात की जानकारी पशु चिकित्सा विभाग के डॉक्टर और अफसरों को पहले से थी। वे बाकयदा मवेशियों का उपचार करने भी आते रहे हैं, चाहते तो अफसर ग्रामीण को समझाईश देकर ज्यादा पशुओं को रखने से मना कर सकते थे, लेकिन अफसरों ने ऐसा नहीं किया। अंतत: व्यवस्था गड़बड़ा गई। ज्ञापन सौंपने के बाद अफसरों को होश आया तब कार्रवाई के लिए आगे आए।