बलरामपुर: स्व-सहायता समूह की महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने की दिशा में राज्य सरकार की महत्वपूर्ण योजना नरवा, गरूवा, घुरूवा, बाड़ी के तहत् जिला बलरामपुर-रामानुजगंज में कलेक्टर विजय दयाराम के. के निर्देशन में गौठानों को मल्टीएक्टिविटी के रूप में विकसित किया जा रहा है, जिसके अंतर्गत जिले में कुल 36 सामुदायिक बाड़ी का संचालन किया जा रहा है। सामुदायिक बाड़ी में स्व-सहायता समूह की 395 महिलाएं अदरक, हल्दी, मिर्ची, बरबट्टी, टमाटर, लौकी, गेंदा फूल का उत्पादन कर नियमित रूप से आय प्राप्त कर रही है। सामुदायिक बाड़ी से जुड़कर स्व-सहायता समूह की महिलाएं अपने निवास स्थान के पास ही रोजगार मूलक गतिविधियों से जुड़कर नये आर्थिक विकास के आयाम प्रशस्त कर रही है।
सामुदायिक बाड़ी के माध्यम से जहां एक ओर स्व-सहायता समूह की महिलाओं के लिए स्वरोजगार के रास्ते खुले है, तो वही दूसरी ओर समूह की महिलाओं के हौसलों को एक नई उड़ान मिली है। वर्तमान में ग्रामीण परिवेश की महिलाएं चूल्हा-चौका तक सीमित नहीं रही, बल्कि स्वरोजगार के नए विकल्पों का उपयोग करना बख़ूबी जानती है। जिले के कुछ विकासखण्डों में कार्यरत स्व-सहायता समूह की महिलाओं ने बताया की गौठानों में सामुदायिक बाड़ी के तहत् खेती कर लगभग 5 लाख रुपये की आमदनी प्राप्त की हैं। विकासखण्ड कुसमी के ग्राम पंचायत भुलसीकला के गौठान में महिलाओं ने लगभग 1 एकड़ खेत में गेंदा फूल की खेती की है, जिसके पहले उत्पादन से जिला स्तरीय राज्योत्सव कार्यक्रम में साज-सज्जा के लिए उपयोग किया गया, जिसके माध्यम से उन्होंने 25 हजार रुपये तथा टमाटर की खेती से लगभग 35 हजार की आय प्राप्त की, तो वहीं राजपुर विकासखण्ड के ग्राम पंचायत गोपालपुर गौठान में कार्यरत संस्कार महिला समूह ने टमाटर की खेती से लगभग 50 हजार रूपये का आय प्राप्त किया।
संघ सहेली समूह की महिला सदस्य विनीता एक्का ने बताया की सामुदायिक बाड़ी से जुड़ने से पहले वह केवल घर तक ही सीमित थी और धान की कटाई और रोपाई का ही काम मिलता था, लेकिन जब से राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के माध्यम से स्व-सहायता समूह से जुड़ी है तब से वह नियमित रूप से आय प्राप्त कर रही हैै जिससे उन्होंने अभी तक 02 लाख 50 हजार रूपये प्राप्त किया है। इसी कड़ी में विकासखण्ड वाड्रफनगर के ग्राम पंचायत बसंतपुर में संचालित गौठान की सती महिला स्व-सहायता समूह की सदस्य कौशल्या प्रजापति ने बताया कि टमाटर की खेती के माध्यम से उन्होंने लगभग 01 लाख रुपये की कमाई की है। महिलाओं में पारंपरिक रूप से ग्रामीण उद्यमिता को विकसित करने का अच्छा विकल्प मिला है। ग्रामीण महिलाओं ने इन संसाधनों का बखूबी उपयोग किया है, जिसका उदाहरण जिले में शासन द्वारा संचालित विभिन्न गौठानों में देखने को मिल रहा है।