नई दिल्ली। सरकारी तेल कंपनियों को जहां एक तरफ पारंपरिक ऊर्जा की घरेलू मांग को पूरा करने के लिए भारी-भरकम निवेश करना है तो दूसरी तरफ ऊर्जा सेक्टर में हो रहे बदलावों को देखते हुए सोलर, ग्रीन हाइड्रोजन, बायोगैस जैसे सेक्टरों में निवेश करना है।
भविष्य में निवेश की यह राशि और ज्यादा भी हो सकती है। ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओआइएल) के सीएमडी डा. रंजीत रथ ने दैनिक जागरण के साथ विशेष बातचीत में अपनी कंपनी की रणनीति के बारे में बताया। रथ का कहना है कि ऊर्जा उपभोग में बदलाव होना तय है। हालांकि, यह उतनी तेज रफ्तार से नहीं होगा, जैसा कि कुछ लोग मानते हैं। दो से तीन दशकों में ऊर्जा क्षेत्र पूरी तरह से बदल जाएगा और एक जिम्मेदारी सरकारी कंपनी के नाते यह हमारा कर्तव्य है कि हम इस बदलाव के हिसाब से रणनीति बनाएं।साथ ही हम पारंपरिक ऊर्जा स्त्रोतों पर निवेश भी कम नहीं कर सकते हैं। भारत में तेल व गैस खोजने का काम अभी बहुत सीमित है। इसका विस्तार अब हो रहा है। राजस्थान, त्रिपुरा, असम, अरुणाचल प्रदेश, केरल, अंडमान निकोबार जैसे क्षेत्र में हाइड्रोकार्बन के नए फील्ड मिलने की संभावना हैं जहां भारतीय कंपनियों को ध्यान देना होगा।
ओएनजीसी विदेश (ओवीएल) के प्रबंध निदेशक राजश्री गुप्ता का कहना है कि कंपनी वर्ष 2030 तक समूचे ऊर्जा सेक्टर में एक लाख करोड़ रुपये और उसके बाद वर्ष 2038 तक और एक लाख करोड़ रुपये का निवेश करेगी। निवेश का एक बड़ा हिस्सा भारत में तेल व गैस खोज में लगाया जाएगा। इसके बाद ऊर्जा सेक्टर में तेजी से बदलाव की संभवना है और फिर हमें उसके हिसाब से दूसरे सेक्टर में अपनी पहुंच तेज करनी होगी।
इसी सप्ताह ओएनजीसी और एनटीपीसी ने देश में नवीकरणीय क्षेत्र में साथ-साथ परियोजना लगाने का समझौता किया है। ओएनजीसी देश की सबसे बड़ी पेट्रोलियम कंपनी है जबकि एनटीपीसी सरकारी क्षेत्र की कंपनी है लेकिन यह देश की सबसे बड़ी ऊर्जा उत्पादक कंपनी भी है। दोनो कंपनियों को समुद्री तट से थोड़ी दूर बसे इलाकों में पवन ऊर्जा परियोजनाएं लगाने में काफी संभावनाएं दिख रही हैं। यह भारत के लिए एक नया सेक्टर है।
भारत अभी विकसित देशों से काफी पीछे
गुप्ता बताते हैं कि वर्ष 2030 तक हमारी नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में स्थापित क्षमता 10 हजार मेगावाट होगी, लेकिन उसके बाद इसमें तेजी से वृद्धि हो सकती है। क्षमता विस्तार के लिए कंपनी नई परियोजना लगाने के साथ इस सेक्टर की मौजूदा कंपनियों की खरीदने के विकल्प को लेकर भी आगे बढ़ रही है।
ऊर्जा की मांग के मामले में भारत अभी विकसित देशों से काफी पीछे है। अमेरिका में प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत तकरीबन 6841 किलोग्राम है, चीन में यह 2224 किलोग्राम है, इजरायल में 2762 किलोग्राम है जबकि भारत में सिर्फ 650 किलोग्राम है। अपनी सात प्रतिशत की आर्थिक विकास दर की वजह से इस मांग में दूसरे देशों के मुकाबले ज्यादा तेजी से वृद्धि होने की संभावना जताई जा रही है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा फोरम की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2030 तक दुनिया में तेल की जितनी अतिरिक्त मांग बढ़ेगी उसका 25 प्रतिशत सिर्फ भारत में होगा।