अम्बिकापुर: आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान द्वारा भारत सरकार जनजातीय कार्य मंत्रालय एवं राज्य शासन के सहयोग से आदिवासी जीवन से संबंधित वाचिक परंपरा के संरक्षण, संवर्द्धन एवं उनके अभिलेखीकरण के उद्देश्य से दिनांक 25 से 27 मई 2023 तक तीन दिवसीय ‘‘जनजातीय वाचिकोत्सव 2023’’ का आयोजन किया गया। आयोजन में राज्य के विभिन्न क्षेत्रों के जनजातीय वाचकों द्वारा जनजातीय वाचिक परंपरा की विभिन्न विधाओं के अंतर्गत अपनी प्रस्तुति दी गई।
जनजातीय वाचिक परंपरा संबंधी पुस्तक का किया जाएगा प्रकाशन-
उक्त तीन दिवसीय आयोजन के उपरांत संस्थान द्वारा जनजातीय वाचिक परंपरा के संरक्षण एवं अभिलेखीकरण के दृष्टिगत पुस्तक का प्रकाशन भी किया जाएगा, जिसमें कार्यक्रम में प्रस्तुत किए गए विषयों के साथ-साथ राज्य के अन्य जनजातीय समुदाय के व्यक्तियों से भी जनजातीय वाचिक परंपरा के क्षेत्र में प्रकाशन हेतु आलेख आमंत्रित किए गए हैं।
उल्लेखनीय है कि पूरा आयोजन टी.आर.टी.आई. संस्थान के नवनिर्मित भवन में ही आयोजित हुआ। कार्यक्रम के उद्घाटन अवसर पर मुख्य अतिथि विभागीय मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता द्वारिकाधीश यादव, संसदीय सचिव, आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास विभाग द्वारा किया गया। साथ ही सचिव डी.डी. सिंह एवं आयुक्त सह संचालक शम्मी आबिदी, आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति विकास विभाग एवं आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान के मार्गदर्शन व उपस्थिति में हुआ।
जनजातीय वाचिकोत्सव में लगभग 175 जनजातीय वाचकों की सहभागिता संभावित- ‘‘जनजातीय वाचिकोत्सव 2023’’ के अंतर्गत लगभग 175 जनजातीय वाचकों की सहभागिता रही। इनमें प्रमुख रूप से जनजातीय साहित्यकार श अश्वनी कुमार पंकज (रांची झारखण्ड) एवं पंकज चतुर्वेदी (नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली) भी विशेष रूप से उपस्थित थे।
नौ विधाओं का किया जाएगा वाचन-
जनजातीय वाचिकोत्सव में कुल 08 विधाओं यथा – ‘‘जनजातीय देवी-देवता एवं मड़ई मेला के संबंध में वाचिक ज्ञान, जनजातियों में प्रचलित लोक कहानियाँ, जनजातियों में प्रचलित कहावतें एवं लोकोक्तियां, जनजातीय लोकगीत, उनका अभिप्राय एवं भावार्थ, जनजातीय तीज-त्यौहार से संबंधित वाचिक ज्ञान, जनजातीय जीवन संस्कार (जन्म, विवाह, मृत्यु इत्यादि) संबंधी वाचिक परम्परा, जनजातीय समुदाय की उत्पत्ति संबंधी धारणा एवं वाचिक ज्ञान, जनजातीय समुदाय में गोत्र व्यवसाय एवं गोत्र चिन्हों की अवधारणा संबंधी वाचिक ज्ञान, जनजातियों में प्रचलित विशिष्ट परम्परा (गोदना, लाल बंगला, घोटूल, धनकूल, जगार, जात्रा, धुमकुरिया आदि) रीति रिवाज एवं परम्परागत ज्ञान एवं विश्वास’’ पर वाचन किया गया है, जिसे प्रतिदिन 8 सत्रों में विभाजित किया गया था। कार्यक्रम के समापन अवसर पर, शामिल सभी जनजातीय वाचकों को स्मृति चिन्ह एवं प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया।
सरगुजा संभाग के 16 जनजातीय वाचकों की सहभागिता रही। जिन्होंने अपने अपने विषय पर विस्तार पूर्वक जानकारी दी। इसी तरह करमा नर्तक दल मैनपाट डांगबुड़ के 45 सदस्यीय नर्तकों द्वारा कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह में करमा नृत्य प्रस्तुत किया गया, जो कि अत्यंत रोचक व आकर्षक था।