अंबिकापुर: सरगुजा जिले में असुरक्षित बांध, सरोवर लोगों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं। आए दिन ऐसे तालाब, बांध में नहाने के लिए जाने वाले लोगों की डूबने से मौत जैसी खबरें सुर्खियां बनती हैं, फिर भी एहतियात बरतने किसी प्रकार की पहल नहीं किए जाने से ऐसी घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। ना ही खतरे का आभास कराते ऐसे बांध, तालाब, नदियों में लोगों का जलक्रीड़ा रुकने का नाम ले रहा है। भीषण गर्मी के मौसम में अधिकतर लोगों का रुख बांध, तालाब की ओर होता है। गर्मी से क्षणिक राहत पाने की उम्मीद कभी-कभार भारी पड़ जाती है। बड़ी घटनाओं के सामने आने के बाद एहतियात, सुरक्षा के प्रबंध जैसी बड़ी बातें होती हैं, फिर सब कुछ पुराने ढर्रे पर चलने लगता है।
दरअसल शहर से 15 किलोमीटर के फासले पर ऐसा ही एक लिबरा बांध है। यहां काफी संख्या में युवक-युवतियों का जलक्रीड़ा और मौज-मस्ती के लिए आना होता है। असुरक्षित तरीके से डैम में छलांग लगाते युवा नजर आते हैं, जो खतरनाक साबित हो सकता है। सवाल यह उठता है कि क्या बांध, नदी पूरी तरह से सुरक्षित हैं। क्योंकि यहां ऐसा कोई चेतावनी बोर्ड भी देखने को नहीं मिलता है, जिससे लोग खतरे से सावधान रहें, जाने-अनजाने में वे किसी गंभीर हादसे का शिकार ना होने पाएं। हम बात किसी बांध का इस्तेमाल बंद कर देने को लेकर नहीं कर रहे हैं, जनहानि रोकने सुरक्षा प्रबंधन को लेकर पहल होनी चाहिए, इस ओर ध्यान आकर्षित करा रहे हैं। ऐसे स्पॉट में सुरक्षा के क्या विकल्प हो सकते हैं, इस पर मंथन जरूरी है। अक्सर देखने को मिलता है कि गर्मी के मौसम में बांध, तालाब, नदी की ओर दैनिक क्रियाओं के लिए लोग जाते हैं। इसके पीछे कारण जलस्त्रोत के साधनों का सूखना भी रहता है।
युवा-युवती व कम उम्र के बच्चे जलक्रीड़ा का आनंद लेने दोस्तों की टोली के साथ ऐसे स्थल में पहुंचने से नहीं चूकते। दूसरी ओर आबादी का दबाव तेजी से बढ़ रहा है। किसी क्षेत्र विशेष में जलस्त्रोत के संसाधन सीमित होने के कारण कृषक सिंचाई की पूर्ति बांध व बहती नदियों से करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो आज भी नदी, बांध घर-घर के लिए उपयोगी हैं। अगर जिले में बांधों का निरीक्षण और मरम्मत हो, जलस्तर की स्थिति का लोगों को पता चले तो जलसमाधि जैसी स्थिति से काफी हद तक निजात मिल सकती है।