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डेस्क: वास्तव में आरक्षण क्या है? क्यों है? होना चाहिए कि नहीं? इसके परिणाम क्या होंगे इसे जानने के लिए इस आलेख को पूरी ईमानदारी से, बिना पूर्वाग्रह से ग्रसित हुए बिना समझना आवश्यक है। ताकि आप जब आरक्षण के संबंध में कोई तर्क या वितर्क करें तो आपका वितर्क कुतर्क न बन जाए यह निर्धारित हो सके। आरक्षण पर लिखने की मेरी मजबूरी ये है कि वर्तमान परिवेश में हर कोई चाहे वह क्यों न ख़ुद को मेरिट वाला समझने वाला इंसान हो या फिर क्यों न कोई प्राकृतिक संसाधनों में बराबर की हिस्सेदारी, अर्थात जनसंख्या के अनुपातिक आधार पर प्रतिनिधित्व की वकालत करने वाला व्यक्ति हो। चाहे कोई स्वयं को आरक्षण की मोहताज़ समझने वाला सामान्य इंसान हो या कोई ख़ुद को बुद्धिजीवी समझने वाला कुटिल व्यक्ति हो या फिर क्यों न वह वास्तव में बुद्धिजीवी हो। सबके सब आरक्षण पर तर्कों और कुतर्कों की बमबारी करते रहते हैं। इसलिए लेखक, विचारक और समाज सेवक होने के नाते मैं हुलेश्वर प्रसाद जोशी आरक्षण पर लिखने जा रहा हूं।
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मैं सर्वप्रथम आरक्षण विरोधी लोगों के प्रश्नों और तर्कों की समीक्षा को प्राथमिकता में सम्मिलित करना आवश्यक समझता हूँ। इसके लिए सबसे पहले यह आवश्यक है कि आरक्षण विरोधी लोगों के अनुसार क्या-क्या प्रश्न है –
# क्या, आरक्षण न्याय की नैसर्गिक सिद्धांत (प्राकृतिक न्याय) के खिलाफ है?
# क्या, आरक्षण मेरिट के खिलाफ़ बकलोल लोगों को ऊपर उठाकर राष्ट्र को अवनति की ओर अग्रसर करती है?
# क्या, आरक्षण योग्य व्यक्ति (मेरिट) के साथ अन्याय करती है?
ऊपर वर्णित तीनों प्रमुख प्रश्नों का सही उत्तर जानने अथवा सही और सटीक उत्तर तय करने के पहले मैं न्याय के संबंध में अपनी मौलिक दर्शन का उल्लेख करना आवश्यक समझता हूँ । मेरा मानना है कि “सैद्धांतिक रूप से समानता के बिना न्याय दूषित और अपूर्ण होती है; परंतु प्रायोगिक तौर पर कई बार समानता की अनिवार्यता न्याय को अन्याय और क्रूरता में परिवर्तित कर सकती है।” इसके अलावा ये जानना भी जरूरी है कि “समानता और न्याय में न्याय अधिक आवश्यक और महत्वपूर्ण तत्व है जिसकी आवश्यकता आकाशगंगा के सभी जीव को है।” इसके साथ ही कुछ महत्वपूर्ण तर्क और दर्शन हैं जिसे नजरअंदाज करके आरक्षण की समीक्षा करना अनुचित होगी। जो इस प्रकार से है :
# “न्याय की नैसर्गिक सिद्धांत (प्राकृतिक न्याय) में समानता आवश्यक सामग्री नहीं है।”
# “मेरिट का तात्पर्य मात्र कुछ एक परीक्षा प्रणाली में कतिपय पैमाने अथवा कारणों से अधिक प्राप्तांक अर्जित करना नहीं है। वरन मेरिट के लिए समस्त प्रतिभागियों के मध्य डीएनएगत विशेषताओं सहित समस्त प्रकार की अवसर में पूर्ण समानता का होना आवश्यक तब हम उस परीक्षा प्रणाली में सम्मिलित किसी प्रतिभागी को मेरिटधारी या गैर-मेरिट मान सकेंगे। अन्यथा किसी व्यक्ति को मेरिटधारी अथवा अयोग्य घोषित करना अन्याय है।”
# “सर्कस के शेर, हाथी, कुत्ते और अन्य जानवर सर्कस में अधिकतर एक्ट बेहतर कर सकते हैं। यदि अन्य स्वजातीय जानवरों के साथ इनकी एक मानक टेस्ट या परीक्षा ली जाये तो सर्कस के ये जानवर अन्य जानवरों से अच्छे या कहें तो अधिक अंक लाएंगे। ख्याल रखना इन नम्बर्स के आधार पर आप इन सर्कस वाले जानवरों को स्किल्ड समझ सकते हैं मगर इन्हें मेरिटधारी समझना आपकी गलती होगी जबकि अन्य जानवरों को गैर-मेरिट या डफर समझना आपके अंधे होने का प्रमाण होगा।”
# “समूचे ब्रह्मांड की सम्पूर्ण संपदाओं में समस्त जीवों का बराबर की हिस्सेदारी है।” ठीक वैसे ही जैसे परिवार की सम्पूर्ण संपत्ति में परिवार के सभी सदस्यों की बराबर की हिस्सेदारी होती है। अतः यदि कोई इंसान या जीव पृथ्वी या ब्रम्हांड के संपदाओं में अन्य की तुलना में अपना अधिक दावा प्रस्तुत करता है तो वह अवैध बेजाकब्जा के अलावा कुछ नहीं है।
“आरक्षण क्या है?”
सामाजिक और राजनैतिक रूप से देखें तो “सामाजिक रूप से पिछड़े एवं शोषित वर्ग की उत्थान के लिए भारतीय संविधान में निहित विशेष प्रावधान ही आरक्षण है।” मतलब भारतीय संदर्भ में एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के लोगों को शासकीय सेवाओं में विशेष रियायत देना आरक्षण है। मगर ख्याल रखना यह आरक्षण की अधूरी व्याख्या है; क्योंकि सैद्धांतिक रूप से ब्रम्हांड के सभी सभ्यता में, सभी घर में, सब परिवार में, सब कम्युनिटी में, सब धर्म में, और सभी प्रकार के वर्गीकरण में आरक्षण व्याप्त है। क्योंकि मेरा मानना है “विशेष उपबंधों (आरक्षण) के बिना मनुष्य ही नहीं अधिकतर जीव भी जीवित नहीं रह सकते।“
“क्योंकि””
# जब आप अपने परिवार के साथ बाजार जाते हैं और नवजात शिशु और बच्चों को गोदी में उठाकर ले जाते हैं। उस समय आपका प्रेम, सद्भावना, मानवता और न्याय ये सबके सब समानता के खिलाफ एक विशेष प्रकार की आरक्षण होती है।
# जब आप घर से बाहर कहीं यात्रा पर जाते हैं और खुद ही साइकिल, बाइक या कार चलाते हैं अथवा ऑटो, बस, ट्रेन या फ्लाइट का किराया चुकाते हैं जबकि अन्य सदस्य (खासकर तुम्हारे संतान) बिना मेहनत किये बैठकर मौज करते हैं। तो यहाँ भी वो तुम्हारे हिस्से के खा रहे होते हैं, राम की खा रहे होते हैं अर्थात आरक्षण का लाभ ले रहे होते हैं।
# जब आप गंभीर रूप से बीमार होते हैं और तब आपको ओपीडी के बजाय आईपीडी में विशेष सुविधाएं मिलती है तो तुम समानता की सिद्धांत के विपरीत विशेष सुविधा ले रहे होते हो। यह भी एक प्रकार का आरक्षण ही है।
# जब आप अपने परिवार के नवजात शिशु और बच्चों से बिना कार्य कराए/ बिना मेहनत कराए उन्हें भोजन, पानी, चिकित्सा और देखरेख सहित अन्य विशेष सुविधाएं देते हैं तो वह भी आरक्षण, ओह माफ़ करना खैरात ही है। स्पष्ट संबोधन से संबोधित करूं तो आपके परिवार के ऐसे सारे नवजात शिशु और बच्चे ____ हैं। अच्छा ये बात तो भूल ही रहा था कि कभी आप भी नवजात शिशु से बालक बने फिर आज मेहनती युवा/बुजुर्ग और मेरिटधारी बने हैं, मगर इसके ठीक पहले आप अपनी खुद की मौलिक भाषा में आप खैरात की खाने के आदी, ____खोर रहे हैं।
# जो आप पैतृक संपत्ति में बटवारा पाते हो, वह भी एक विशेष प्रकार का आरक्षण ही है; क्योंकि पैतृक संपत्ति को अर्जित करने में आपका कोई श्रम नहीं लगा है। उसे संग्रहीत करने में आपका योगदान शून्य है। अर्थात आपके द्वारा पैतृक संपत्ति में बटवारा लेना खैरात है।
“क्या आरक्षण को समाप्त कर देनी चाहिए?”
हाँ; आरक्षण को समाप्त कर देनी चाहिए।
परंतु कैसे?
यदि भारतीय संदर्भ में लागू आरक्षण को तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दिए जाएंगे तो फिर से देश में असमानता, अन्याय और अत्याचार को बढ़ावा मिलेगा और आरक्षण को हटाने का कोई फायदा नहीं बल्कि दर्जनों गुणा अधिक नुकसान होगा।
अतः यदि आरक्षण समाप्त करना है तो सबसे पहले:
# जाति, वर्ण और धर्म को लिखना, बताना और पूछना सबसे पहले प्रतिबंधित कर देना चाहिए।
# धनवान को धनवान के साथ, बुद्धिमान को बुद्धिमान के साथ, शक्तिशाली को शक्तिशाली के साथ, गोरे को गोरे के साथ और काले को काले के साथ मिलकर संगठन या सोसाइटी बनाने से प्रतिबंधित कर देना चाहिए।
@ मगर ऐसा संभव नहीं है इसलिए वर्तमान में जब तक सभी वर्ग का समुचित प्रतिनिधित्व स्थापित नहीं हो जाता, तब तक आरक्षण की व्यवस्ठा को बनाए रखना उचित प्रतीत होती है।
आरक्षण समाप्त करने से होने वाले संभावित नुकसान क्या होंगे?
# देश में धर्म, वर्ण, जाति, रंग और क्षेत्र के आधार पर पुनः भेदभाव, हिंसा और छुआछूत शुरू हो जाएगा।
# धनवान और शक्तिशाली लोग धीरे धीरे लोकतंत्र को समाप्त करके राजतन्त्र की नींव रखेंगे।
# धनवान और शक्तिशाली लोग और अधिक धनवान तथा शक्तिशाली हो जाएंगे तथा गरीबों को फिर से गुलाम बनाकर उनकी खरीद फरोख्त करेंगे।
# धार्मिक अतिवादी लोग देश को धार्मिक मान्यताओं के आधार पर चलाने का प्रयास करेंगे तथा दूसरे धर्म के लोगों को या तो मार डालेंगे या उनका शोषण करेंगे।
# चालाक और कुटिल बुद्धि के लोग फिर से अपनी एक अलग सोसाइटी बना लेंगे और अन्य वर्ग की शोषण करेंगे।
# सेहतमंद लोग कमजोर और बीमार लोगों को मरने के लिए विवश कर देंगे।
अंत में ‘आरक्षण क्या है?’ की समीक्षा करने पर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि
1- आरक्षण एक विशेष प्रकार की सामाजिक न्याय का सिद्धांत है।
2- आरक्षण जनसंख्या के आधार पर सामाजिक प्रतिनिधित्व का अधिकार देना वाला सिद्धांत है।
3- मनुष्य ही नहीं वरन ब्रम्हांड के अधिकतर जीव आरक्षण के मोहताज हैं।
4- भारतीय परिपेक्ष्य में देखें तो आरक्षण एक विशेष वर्ग के साथ 5000 साल तक हुए अमानवीय अत्याचार और अन्याय की क्षतिपूर्ति के रूप में लागू न्यायिक प्रक्रिया है।
आलेख : हुलेश्वर प्रसाद जोशी
लेखक, विचारक, दार्शनिक और समाज सेवक
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