अंबिकापुर/बैकुंठपुर।”क्यूं रहना जरूरी है, मुझे किसी आदमी के साथ, क्या मेरा कोई वजूद नहीं,
क्या मैं नहीं बना सकती अपना आसमान”
“क्यूं जाऊं मेरे माता-पिता को छोड़कर तुम्हारे साथ,
मैं तो तुम्हें ठीक से जानती भी नहीं, क्यों जरूरी है मेरा मकान तेरे हो दर पर”
“क्यूं भूलूं मैं अपना देश, अपना गांव, अपने लोग, अपनी सखियां, क्यू नहीं तुम मेरी तरह करो कभी”
“क्यूं अपनाऊ तुम्हारा गांव, तुम्हारे सपने तुम्हारे लोग, जिसे मैं समझती ही नहीं”
“क्यूं बनाऊं तुम्हारी पसंद को अपनी पसंद, क्या मेरी अपनी कोई पसंद नहीं”
“क्यू बनाऊं तुम्हारी छत अपनी, क्या मैं खुद में सक्षम नहीं, मैं तुम्हें नहीं कहती कि मेरी तरह तुम रहो मैं जननी भी हूं, दुर्गा भी, मैं वात्सल्य का भंडार भी हूं और काली भी”
“क्यूं नहीं तुम मुझे अपनाओ, मुझसे जुड़ी हर चीज अपनाओं, जिंदगी को अब और मुश्किल ना बनाओ, आधा फासला तुम, आधा मेरे लिये भी रास्ता बनाओ”।

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