बलरामपुर: राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, बलरामपुर के अंतर्गत व्यक्तिगत आय करने वाली महिला स्व सहायता समूहों की संख्या बढ़ती जा रही है और वे सभी आत्मनिर्भर होने की ओर अग्रसर हैं। आजीविका संवर्धन हेतु संसाधन, कौशल तथा राशि महिलाओं को समूह के माध्यम से बिहान जिला मिशन प्रबन्धन ईकाई द्वारा समय-समय पर उपलब्ध कराई जाती है। बिहान द्वारा आजीविका संवर्धन के लिए नवाचारी गतिविधियों को भी शामिल किया जा रहा है। महिलाओं ने लाईन विधि से कृषि कार्य को विगत कुछ वर्षों में अपनाया है, जिसका परिणाम है कि फसल पैदावार में लगभग डेढ़ गुना का इजाफा उतने रकबे में मुमकिन हुआ है। बिहान की कृषि सखी, पशु सखी प्रायः समुदाय आधारित स्थायी कृषि एवं वैज्ञानिक तरीके से पशुपालन को बढ़ावा देने का काम कर रही हैं। चूंकि कृषि आधारित आयमूलक गतिविधियों पर ग्रामीणों का रुझान और समझ विकसित करना आसान होता है इसलिए एक सदस्य को एक से अधिक गतिविधि से जोड़ने का प्रयास जिला पंचायत की मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्रीमती रीता यादव के मार्गदर्शन में की जा रही है। इस दिशा में समूह की महिलायें बैंको से छोटे-छोटे ऋण लेकर जहाँ खेती-बाड़ी में लगा रही हैं, वहीं मुर्गी पालन, सुकर पालन, बकरी पालन जैसे गतिविधियों में रूचि बढ़ रही है। गांव में महिलाओं ने लोन लेकर गैर कृषि कार्य जैसे दुकानदारी, आटा चक्की मिल, बर्तन दुकान, श्रृंगार दुकान, होटल का संचालन कर स्वयं और परिवार के अन्य सदस्यों को स्वरोजगार से जोड़ने का काम किया है। आजीविका संवर्धन का ऐसा उदाहरण विकासखण्ड राजपुर के ग्राम जिगड़ी में देखने को मिला है जहां जय माँ अम्बे समूह के 10 सदस्यों ने बैंक लिंकेज के तीसरे लिंकेज का राशि आहरण कर गैर कृषि आधारित आजीविका प्रारंभ की है। सदस्यों ने बताया कि उनका बैंको को ऋण वापसी प्रतिमाह होने के कारण अंतिम वित्तीय वर्ष में 15 हजार रुपये का ब्याज अनुदान बैंक द्वारा समूह को प्राप्त हुआ है। समूह की सदस्य शालिता गुप्ता श्रीगार समान के थोक विक्रय का काम करती है। शालिता बताती है कि समूह से जुड़कर सभी दीदियों ने अपना अपना व्यापार शुरू किया है और सभी का वार्षिक आय लगभग 1.20 लाख से ज्यादा है। दीदी ने अपने पुत्र अमित को स्नातक की पढ़ाई अम्बिकापुर से करवाई है और उनका कहना है कि समूह से जुड़ कर विभिन्न योजनाओं का लाभ मिलने से प्राप्त आय द्वारा ही यह संभव हो सका है। बिहान के माध्यम से जिले में आजीविका संवर्धन को गति मिली है और महिलाएं इससे जुड़कर न केवल आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हुई है बल्कि अपने परिवार के भरण-पोषण के साथ ही उच्च शिक्षा देने में सफल हो रही हैं।

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